Monday, December 23, 2024
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HomeBlogअपना सीनियर हायर सेकंडरी स्कूल हो गया 114 साल का वटवृक्ष

अपना सीनियर हायर सेकंडरी स्कूल हो गया 114 साल का वटवृक्ष

विद्यालय ने अपनी छांवतले हजारों की तादाद में सरवाड़ और आसपास देहात के बच्चों को पढ़ाया-लिखाया, खेलना सिखाया। समाज की मुख्यधारा में लाने का काम किया। यहां के स्टूडेंट्स ने देशभर में की है सफलता हांसिल।


सरवाड़। सीनियर हायर सेकंडरी स्कूल के विगत इतिहास पर जब हम नजर दौड़ाते हैं तो इसके उत्तरोत्तर विकास की एक लंबी कहानी आंखों के सामने घूमती है।
हमने और हमारे बुजुर्गों ने जिस स्कूल से पढ़ाई की वो है सरवाड़ का सीनियर स्कूल! ये वो स्कूल है जिसने देश-विदेश को अपने-अपने क्षेत्र की अव्वल शख़्शियतें दी।
हजारों छात्र-छात्राओं को यहां से इल्म हांसिल कर देश-दुनिया में कामयाबी मिली। कई राजस्थान में तो कई देश से बाहर बुलंदियों पर है।

23 हजार 652 F2 क्षेत्रफल में फैला यह स्कूल वर्ष 1910 में प्राथमिक स्तर का था।

प्राथमिक शिक्षा देने के बाद यह लगातार वक्त के साथ-साथ क्रमानत होता रहा। वर्ष 1925 में उच्च प्राथमिक, वर्ष 1955 में माध्यमिक और 1 अगस्त 1970 में उच्च माध्यमिक स्तर का हुआ। यहां साइंस, कॉमर्स और आर्टस संकाय है। स्कूल के मैनेजमेंट के लिए प्रधानाचार्य व्याख्याता सहित विभिन्न श्रेणियों में कुल 37 पद स्वीकृत है। यहां स्काउट, एनसीसी के कैडेट्स तैयार होते हैं तो यहां से हॉकी के राज्य स्तरीय खिलाड़ी भी निकले हैं।

स्कूल मैनेजमेंट बनाने-सुधारने में कई शख़्शियतों की रही अहम भूमिका

जब स्कूल प्राथमिक स्तर की थी। तब अध्यापक के रूप में बृजभूषण भट्ट, श्री रिद्धकरण, श्री भटनागर, श्रीकृष्ण शर्मा ने स्कूल रूपी पौधे को पाला और अनुशासन की खाद देकर हराभरा किया। बृजभूषण भट्ट अध्यापक होने के साथ-साथ नामी पेंटर भी थे। वह पेंसिल से आश्चर्यजनक पेंटिंग्स बनाया करते थे। जब स्कूल माध्यमिक स्तर की हुई तब पहले प्रधानाचार्य राधा गोपाल शर्मा बनकर आए। चंद्रशेखर श्रोती टीएम राजानी भी यहां के प्रधानाचार्य रहे।

टीएम राजानी इंग्लिश के महारथी थे। वर्ष 1974 में यहां के प्रधानाचार्य निहालचंद जैन थे। उनसे पहले और बाद में बालकृष्ण मेहरा, इंद्रमल राठी, शिवराज गुप्ता, सुमर सिंह, पीएन भान के हाथ में यहां की कमान रही। पीएन भान कश्मीरी थे। प्रधानाचार्य सुमर सिंह निकटवर्ती गांव गोयला के थे। उन्होंने ही यहां बगीचे लगाए। वर्ष 1975 में प्रधानाध्यापक थे विश्वमोहन दत्त। अध्यापक थे पुरुषोत्तमदास बांगड़, जगमोहन गौड़, देवदत्त ओझा, मदनलाल गौड़, अब्दुल करीम खान, प्यारेलाल टेलर, ज्योतिस्वरूप पाराशर।

हिंदी के अध्यापक पुरुषोत्तम दास बांगड़ ने स्कूल में प्रकाशित पत्रिका ‘सरवरी’ में मधुर हास्य दोहावली लिखी

दोहावली में उस वक्त के तमाम अध्यापकों के व्यक्तित्व पर कलम चलाई। उन्होंने उसमें प्रधानाध्यापक विश्व मोहन दत्त के बारे में लिखा कि –

“विश्वमोहन सुंदर-सुखद, विद्यालय के भाल।
“मृदुभाषी, शीतल, विमल, मस्त रहे निज हाल।।
“छेड़छाड़ करते नहीं, मानें सबकी बात।
“धीम स्वर, मृदुहास्य से, देदेवे झट मात।।
“काम-काज जो नहीं करे, पड़े रहे अलमस्त।
“ऐसे लोगों डरे रहो, जानते हैं सब दत्त।।

कड़क और अनुशासन प्रिय अध्यापक मदनलाल गौड़ वर्ष 1973 से वर्ष 2000 तक यानी सेवानिवृति तक यहां रहे। उनके बारे में’सरवरी’में लिखा है कि –

“सरल प्रकृति, फन के धनी, करते काम कमाल।
“समाचार लेकर सुलभ, रहते मदनलाल।।

स्कूल में वर्ष 1970 के दशक में अनुशासन कायम करने वाले अध्यापको में प्रमुख नाम था अब्दुल करीम खान का। कहते हैं उस दौर के हुड़दंगी छात्र उनके नाम से ही थरथरा जाते थे। “सरवरी” में लिखा है कि –

“शुक्रवार समयांक एक, दे दो भजलें रहीम।
“शेष काम में जोत दो, पीछे नहीं करीम।।

ये भी रहे यहां शिक्षक, जिन्होंने यहां की अपने हिस्से की मेहनत

वर्ष 1989 में स्कूल के प्रधानाचार्य रहे अमोलकचंद जैन के बाद कृष्णशंकर माथुर, दामोदर प्रसाद सोमानी, धर्मीचंद जैन, बिरदा सिंह रावत, नरेंद्र राव, पुरुषोत्तम स्वरूप तंवर, उम्रदराज पठान के बाद जीवराज जाट की प्रमुख भूमिका रही। यहां चांदमल झंवर भी अध्यापक रहे। झंवर ने भी यहां की व्यवस्था और अनुशासन को संभाला। झंवर आलसी अध्यापकों से अनुशासन और पढ़ाई को लेकर भिड़ जाते थे।

प्रधानाचार्य जीवराज जाट का कार्यकाल रहा स्वर्णिम

वर्ष 1997 से 20 जून 2003 तक प्रधानाचार्य रहे जीवराज जाट का कार्यकाल स्कूल के लिए स्वर्णिम दौर रहा। उन्होंने अपने वक्त में स्कूल के उजड़े बगीचों को दुरुस्त कर पौधे लगाए। जो आज पेड़ों में तब्दील होकर स्कूल की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं।

स्कूल से निकले काबिल स्टूडेंट्स

अब राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय वटवृक्ष बन चुका है। जिसने अपनी छांवतले हजारों की तादाद में सरवाड़ और आसपास देहात के बच्चों को पढ़ाया-लिखाया, खेलना सिखाया। समाज की मुख्यधारा में लाने का काम किया। यहां के स्टूडेंट्स ने देशभर में सफलता हांसिल की। यहां से पढ़कर निकले ओमप्रकाश कलंत्री भाभा रिसर्च इंस्टिट्यूट में वैज्ञानिक बने। किशनस्वरूप चौधरी हाईकोर्ट के जज तो सुरेश चौधरी उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में गणित विभाग के हेड बने। डॉक्टर भंवरलाल पोरवाल उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में एग्रीकल्चर विभाग के हेड तो मोहनलाल कलवार कोटा तकनीकी महाविद्यालय में प्रिंसिपल रहे।

वह बुल्गारिया, हंगरी जैसे देशों में भी पढ़ाने गए।
राजकुमार झंवर अमेरिका की एक कंपनी में कार्यरत है। सुशील मालानी आर्मी में है। विनोद कुमार बांगड़ आरपीएस, दिनेश कुमार बांगड़ कस्टम कलेक्टर है। श्रीवल्लभ शारदा कनाड़ा में है। अभिषेक झंवर अमेरिका में अमेजॉन कंपनी में कार्यरत है। योगेश कुमार चौधरी नार्वे की हेलिबर्टन लिमिटेड कंपनी में है तो उनके भाई लोकेश कुमार चौधरी अमेरिका में इंजीनियर है। ढिगारिया विक्रम सिंह राठौड़ बहरीन में शेफ है। महेंद्र रैगर जयपुर में डॉक्टर है। फतेहगढ़ की प्रियंका पेरिस में है।

गारनेट को खदानों से मजदूरों द्वारा निकाला जाता है।इसकी 100 फीट गहराई तक खदानें होती है।

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