टोडरायसिंह की कामयाबी के बाद ही सरवाड़ में मिलन मंदिर सिनेमा शुरू करने का ख्याल आया। वही ख्याल 12 अप्रैल 1994 को मिलन मंदिर की भव्य ओपनिंग के साथ साकार हुआ।
सरवाड़। मिलन मंदिर सिनेमा। सिने जगत का वो मंदिर जिसने शहर की आवाम को हंसाया, गुदगुदाया, रुलाया और सैकड़ो कहानियों को अपने भीतर बुनना सिखाया। हर एक शख़्स का मिलन मंदिर टॉकीज से खास रिश्ता रहा। किसी ने यहां छुपकर पैसों का जुगाड़ कर फिल्म देखी तो किसी के हर शो को देखने की जिद ने मिलन मंदिर को उसे दौर में ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया कि यहां की आवाम इसके बिना अधूरी सी हो गई।
मिलन मंदिर सिनेमा शहर के हेमचंद हरवानी और उनके भतीजे टोपनदास हरवानी का सपना
ये सपना 12 अप्रैल 1994 को अजमेर के संत हाथीराम दरबार और उनके भक्त राधूराम के हाथों फीता कटवाकर पूरा किया गया। शहर के इतिहास का स्वर्णिम दिन, जो सिने प्रेमियों के लिए किसी अनमोल तोहफे से कम नहीं था। इस तरह सरवाड़ के पहले टॉकीज “मिलन मंदिर सिनेमा” की शुरुआत हुई।
पहली फिल्म दारा सिंह अभिनीत “भक्ति में शक्ति” का हुआ प्रदर्शन
तकरीबन 5 सौ लोगों के बैठने की व्यवस्था वाले टॉकीज का पहला शो ही हाउसफुल गया। लोगों ने खड़े रहकर फिल्म देखी। पहले शो की लोकप्रियता लिए इस टॉकीज का सुनहरा कारवां वक्त के साथ चल पड़ा।
टॉकीज की शुरुआत से पहले चलते थे वीडियो
मिलन मंदिर के शुरू होने से पहले शहर में चंद्रू वीडियो, गोवर्धन वीडियो और आनंद वीडियो सिनेप्रेमियों के दिल की ठंडक थे। लेकिन टॉकीज के शुरू होने के बाद सब एक-एक कर बंद होते गए।
मिलन मंदिर सिनेमा का ख्याल कैसे आया ?
ये जानने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं। हेमचंद हरवानी बताते हैं कि मिलन मंदिर सिनेमा से पहले उनके बड़े भाई रूपचंद सरवाड़ में ही वर्ष 1978 में गुलाब टॉकीज चलाया करते थे। जो बिना छत का था। वो वर्ष 1980 तक चला।उसकी ओपनिंग में ही बाबा रामदेव फिल्म का प्रदर्शन हुआ। जो उस वक्त की हिट फिल्म साबित हुई। गुलाब टॉकीज शाहपुरा निवासी मामा सत्ताराम के अशोक टॉकीज से प्रेरणा लेकर शुरू किया गया था।
मिलन मंदिर टॉकीज में लगी थी बी11 मशीन, जो मुम्बई से लायी गयी*
गुलाब टॉकीज में भी बी11 जर्मन मॉडल पावर मशीन लगी थी। जो मुंबई से मंगवाई गई थी। गुलाब टॉकीज के वर्ष 1980 में बंद हो जाने के बाद तकरीबन 21 वर्ष की उम्र में हेमचंद हरवानी ने टोंक जिले के टोडारायसिंह कस्बे में किराए पर लेकर 5 अप्रैल 1980 में श्रीगणेश मंदिर सिनेमा शुरू किया। जो बहुत लोकप्रिय हुआ। टोडरायसिंह की कामयाबी के बाद ही सरवाड़ में मिलन मंदिर सिनेमा शुरू करने का ख्याल आया। वही ख्याल 12 अप्रैल 1994 को मिलन मंदिर की भव्य ओपनिंग के साथ साकार हुआ।
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