उस दौरान नगरपालिका बोर्ड में हीरालाल कलवार चेयरमैन थे, जिन्हें ठेकेदार भी कहा जाता था। नगरपालिका उपाध्यक्ष ताराचंद जैन और अधिशासी अधिकारी के पद पर शिवप्रकाश शर्मा थे।
उस दौरान नगरपालिका बोर्ड में हीरालाल कलवार चेयरमैन थे, जिन्हें ठेकेदार भी कहा जाता था। नगरपालिका उपाध्यक्ष ताराचंद जैन और अधिशासी अधिकारी के पद पर शिवप्रकाश शर्मा थे।
एम, इमरान टांक
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सरवाड़। आज गपशप नेहरू वाचनालय ओर घंटाघर पर! पहचान गए नेहरूवाचनालय को? वही जो विजयद्वार से बस स्टेंड की तरफ बाहर निकलनें पर घंटाघर से सटकर है। जहां गणतंत्र ओर स्वतंत्रता दिवस पर नगरपालिका अध्यक्ष द्वारा झंडारोहण किया जाता है। जहां नगर की तमाम स्कूलों के बच्चे सीनियर स्कूल के मुख्य समारोह में जानें से पहले ठहरते है, झंडारोहण में शरीक होनें के बाद पालिकाध्यक्ष के भाषण को अनमनें मन से सुनकर सीरियर स्कूल की तरफ प्रस्थान करते है। ये दशकों से होता आ रहा है। हम सबनें ये वक्त गुजारा है।
घंटाघर से सटकर जहां झंडारोहण होता है, वही नेहरू वाचनालय
वाचनालय, जहां किताबें रखी ओर पढ़ी जाती हो। कहते हैं कि पुस्तकें मनुष्य के आत्म-बल का सर्वश्रेष्ठ साधन हैं। महान देशभक्त लाला लाजपत राय नें पुस्तकों के महत्व के संदर्भ में कहा था कि ‘‘मैं पुस्तकों का नर्क में भी स्वागत करूंगा, इनमें वह शक्ति है जो नर्क को भी स्वर्ग बनानें की क्षमता रखती है। मतलब शिक्षा ओर पुस्तकों का महत्व हर दौर में रहा है। सरवाड़ में सन् 1965 के दौर में पढ़ाई को कितनी अहमियत दी जाने लगी थी और तत्कालीन नगरपालिका बोर्ड सरवाड़वासियों को शिक्षा ओर आ देश-दुनिया से रूबरू करवानें के लिए कितना गंभीर था, इसका अंदाजा उस वक्त सरवाड़ में वाचनालय के निर्माण से लगाया जा सकता है।
देश-दुनिया से रूबरू करवानें के लिए कितना गंभीर था, इसका अंदाजा उस वक्त सरवाड़ में वाचनालय के निर्माण से लगाया जा सकता है।
इसका अनावरण तत्कालीन स्वायत्त शासन मंत्री बरकतुल्ला खां (बाद में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने) द्वारा दिनांक 26 जनवरी सन् 1965 को बुधवार के दिन किया गया। उस दौरान नगरपालिका बोर्ड में हीरालाल कलवार चेयरमैन थे, जिन्हें ठेकेदार भी कहा जाता था। नगरपालिका उपाध्यक्ष ताराचंद जैन और अधिशासी अधिकारी के पद पर शिवप्रकाश शर्मा थे। तब माधोलाल गुप्त, सम्पतलाल जैन, बख़्तावर लाल माली, रायचंद गांछा, रामसुखी अरोरा, लादूलाल शर्मा,मोडूलाल स्वर्णकार, नाथू खां नेब,मंगलाराम रेगर ओर सुगन देवी यानि कुल 10 पार्षद थे।
घंटाघर शहर का फर्स्ट इम्प्रेशन है घंटाघर
कहते है ‘‘फर्स्ट इम्प्रेशन-लास्ट इम्प्रेशन’’होता है। बस से उतरते ही घंटाघर यात्रियों का मन मोह लेता है। पुराने दौर में घंटाघर इसलिए बनाए जाते थे, ताकि वहां की आवाम को घंटाघर में लगी घड़ी के मार्फत समय का सही पता लग सके। उस दौर में बहुत कम लोगों के पास घड़ी हुआ करती थी,जिनके पास नहीं होती वो यहां से वक्त का पता लगाते और जिनके पास होती वो अपनी हाथ घड़ी को घंटाघर में लगी घड़ी से चाबी भरकर
मिला लिया करते थे।
बात घड़ी की चली है तो थोड़ी गपशप घड़ी पर भी!
कहते हैं लंबे समय तक नौजवानों की सबसे बड़ी हसरत कलाई घड़ी रही। फर्स्ट डिवीजन आने, हाई स्कूल पास करने या कोई बहुत बड़ा काम अंजाम देने जैसे कामों में घड़ी बतौर तोहफा दी जाती थी। दशकों तक घड़ी दहेज का प्रमुख आइटम रही है। अब घड़ियां मोबाइल में आ गई है। कभी एचएमटी ओर टाटा समूह की टाइटन का देश के बाजारों मे एकछत्र राज था। घड़ी ओर घड़ियों के दौर पर गपशप फिर कभी! लब्बोलुआब है कि वर्ष 1965 का नगरपालिका बोर्ड नगर की खूबसूरती ओर यहां की आवाम की सुविधाओं का ख़ास ख़याल रखता था। इसका सुबूत घंटाघर और वाचनालय