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मंदिर में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह भगवान की मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि यह मूर्ति सरोवर में एक टीले की खुदाई के दौरान मिली थी।
ललित नामा
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बघेरा। पवित्र वराह सरोवर के किनारे अनुमादित आठवीं सदी से भी पहले बनाए गए मंदिर में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह भगवान की मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि यह मूर्ति सरोवर में एक टीले की खुदाई के दौरान मिली थी। इस धारणा को पुख्ता करते हुए एक कवि ने लिखा ’आप प्रकटे आपा रूपी मूर्ति उजागर’ वराह मूर्ति की विषालता और सुंदरता को देखकर कोई भी अभिभूत हो जाता है। पुरानें लोगों का कहना है कि वराह भगवान की इतनी भव्य प्रतिमा पूरे विश्व में कहीं नहीं है। यहां मौजूद प्रतिमा की उंचाई 6 फिट व चौड़ाई 4 फिट है।
कलात्मक शैली से तराशी गई है प्रतिमा
चिकने श्याम वर्ण के पत्थर पर कलात्मक शैली से तराशी गई इस प्रतिमा में सात लोक और इनमें विचरण करने वाले जीव-जन्तु, मानव और उनकी समस्त चेष्टाओं, नृत्य, गायन, वादन और युद्ध मूर्ति पर उकेरा गया है। पीठ पर सात समुद्र, इससे प्राप्त चैदर रत्न, समुद्र मंथन करते हुए देवता, दानव, कष्यप, सुमेरू पर्वत, वासुकी नाग आदि भी सुशोभित है।
कन्याएं हाथ जोड़े श्रीहरि की आभार अराधना
वराह रूप भगवान विष्णु की इस प्रतिमा के चारों पांव शंख, चक्र, गदा और पदम, गले में वैजयंति माला व अन्य आभूषण मस्तक पर रासलीला, चक्र, पृष्ठ भाग में पूंछ से लिपटा शेष नाग जो कुंडली बनाते हुए चारों पैरों के मध्य से होता हुआ अपने फन को वराह भगवान के सामने नमन करती मुद्रा मे सुशोभित है। इसी में दोनों नाग कन्याएं हाथ जोड़े हुए श्रीहरि की आभार अराधना कर रही है।
तकरीबन 525 प्रतिमाएं एक ही स्थान पर एक ही मूर्ति में विद्यमान
पृथ्वी नारी के रूप में हाथ जोड़े हुए इस प्रकार बैठी हुई है कि महा वराह द्वारा उद्धार किए जाने पर वे आभार प्रदर्शित कर रही है। शेष नाग के आगे ब्रह्मा, अगल-बगल में नारद और गरूड़ चौबीस अवतार, आठ वसु, पांच पांडव, राम, देवी, देवता, चारधाम इत्यादि मिलाकर करीब 525 प्रतिमाएं एक ही स्थान पर एक ही मूर्ति के रूप में विद्यमान है। वास्तु शिल्प का यह अनूठा उदहारण दर्शनार्थियों को आश्चर्य से भर देता है। मंदिर के निकट ही पवित्र सरोवर है, जहां से यह मूर्ति निकली है। वह वराह भटृी के रूप में जानी जाती है।