एम. इमरान टांक
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सरवाड़ का सीनियर हायर सेकेंडरी स्कूल! जहां से हजारों छात्र-छात्राओं नें शिक्षा ग्रहण कर देश-दुनिया में नाम कमाया! कक्षा छठी से दसवीं तक पहली पारी और ग्यारहवीं और बारहवीं साइंस, काॅमर्स और आर्टस की क्लासें दूसरी पारी में यानि साढ़े बारह बजे बाद शुरू होती थी। पहली पारी की छुट्टी होनें के बाद स्टेज पर प्रार्थना सभा होती, उसके बाद सभी क्लासें विधिवत् रूप से शुरू हो जाती। स्टेज से सटकर ही आर्टस विषय के छात्रों की क्लास लगती थी। आर्टस क्लास के बाद सांइस फिर लाईब्रेरी और उसके बाद काॅमर्स के छात्रों के क्लास रूम थे। स्कूल के बारे में फिर कभी बात करेंगे।
स्व. छोटुलाल सर जो राजनीति विज्ञान पढ़ाया करते, वक्त के पाबंद और लाजवाब शिक्षक
आज हम बात करेंगे आर्टस विषय की! आज गपशप होगी शिक्षा जगत के उस महान शिक्षक की, जिसनें हजारों छात्रों का भविष्य बनाया। आज बात होगी शब्दों के जादूगर की! आज हम बात करेंगे, कैसे एक शिक्षक बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित होता है ? कैसे एक शिक्षक स्टुडेंटस को परिवार के मुखिया की तरह ट्रिट करता है ? आज बात होगी राजनीति विज्ञान के शिक्षक छोटूलाल वर्मा सर की, जिन्होनें हजारों छात्रों के जीवन को नई दिशा दी। उन्हें काबिल बनाया, उन्हें भविष्य को लेकर गंभीर किया। उन्हें शिक्षा के साथ-साथ बातचीत का ढंग सिखाया।
सर,आर्टस विषय की ग्यारहवीं कक्षा के क्लास टीचर हुआ करते थे।
वक्त के पाबंद इतने कि घंटा लगते ही क्लास में दाखिल हो जाना उनकी आदत में शुमार था। बगल में किताब दबाए बेहतरीन तैयारी के साथ क्लास में आते, किताब उठाकर देखते कौनसा पाठ पढ़ाना है। फिर किताब को एक तरफ रख, चाॅक हाथ में और ब्लैक बोर्ड पर उस पाठ से सम्बंधित जानकारियां लिख देते, फिर शुरू होता सम्बंधित पाठ का पोस्टमार्टम! ऐसे पढ़ाते कि ठोठ से ठोठ स्टुडेंट को वो चीजें हमेशा-हमेशा के लिए याद हो जाती।
आर्टस में हमेशा बगावती तेवर के स्टुडेंट होते है, आज भी होंगे ?
लेकिन मजाल उनके पीरियड में कोई भी जरा सी आवाज कर दे, ये नहीं था कि उनका डर था बल्कि उनसे और उनके पढ़ानें के तरीके से मुहब्बत थी। मैं भी उनका स्टुडेंट रहा। कई सालों तक सर नें सीनियर स्कूल में अध्यापन कार्य करवाया लेकिन किन्हीं कारणों से उनका यहां से मोहभंग हो गया और वे स्थानान्तरण करवाकर फतेहगढ़ सीनियर स्कूल में चले गए, उनके साथ हिन्दी के व्याख्यता महावीर प्रसाद जांगीड़ भी थे। वो ऐसे शिक्षक थे, जब वे जाॅइन करनें के लिए सरवाड़ स्कूल से फतेहगढ़ सीनियर स्कूल गए तो उनकी आंखों में परिवार से बिछड़नें जैसा गम और आंसू बह रहे थे। छोटुलाल सर अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनके द्वारा दी हुई शिक्षा और संस्कार आज हजारों छात्रों के मार्ग को प्रशस्त कर रहे है।